हिन्दी साहित्यिक विकास के एक लंबे दौर से गुजरी है और इस दौरान कई उतार-चढाओं, बदलावों तथा नई प्रवृतियों से इसका परिचय हुआ। इस विकास-पथ पर यात्रा के दौरान कई सृजनकारों ने अपनी सृजनात्मक क्षमता से हिन्दी को अनमोल रचना रूपी आभूषणों से विभूषित किया है। चाहे वह गद्य विधा हो या पद्य विधा, हिन्दी के कई साहित्यकारों ने अपनी अलग साहित्यिक पहचान बनाई है. इन्ही मनीषियों तथा इनकी रचनाओं से जुड़ने की मैं एक छोटी सी कोशिश कर रहा हूँ।

19 सितंबर 2008

लोकहितवादी भक्त कवि: तुलसीदास


हिन्दी साहित्य के भक्ति काल में भक्त कवियों ने अपने समाज और संस्कृति की रक्षा हेतु काव्य ग्रंथों की रचना की। इस काल में प्रवाहित होने वाली भक्ति काव्य धाराएँ सगुण काव्य तथा निर्गुण काव्य के रूप में दो हिस्सों में विभक्त थी। सगुण काव्य धारा की पुनः दो उपधाराएँ रहीं -एक कृष्ण भक्ति काव्य जिसके शीर्ष पर सूरदास रहे और दूसरी ओर राम भक्ति काव्य जिसके अग्रणी कवि गोस्वामी तुलसीदास थे। तुलसी के काव्य की एक विशिष्टता यह रही कि उनकी रचनाओं में समाज के समक्ष मानवीयता से ओत-प्रोत सामाजिक तथा पारिवारिक मूल्यों के आदर्श रूप को प्रस्तुत किया गया है। भक्ति के साथ-साथ सामाजिक सन्दर्भों से जुड़ी, लोक चिंता से युक्त जो क्षमता तुलसी के काव्य में दिखाई देती है वह सम्पूर्ण हिन्दी साहित्य में अद्वितीय है।

जीवन वृत्त- तुलसी के जन्म काल सम्बन्धी जानकारियाँ पूर्णतया प्रमाणित नही हो सकी है। कई विद्वानों ने अपने अनुसार प्राप्त प्रमाणों को साक्ष्य मानकर तुलसीदास का जीवन-वृत्त लिखने का कार्य किया है। तुलसीदास के बारे में अनेक जनश्रुतियाँ भी प्रचलित हैं। इनके आधार पर भी तुलसी के जीवन सम्बन्धी कई बातें मान्य हो गई हैं। सर्वाधिक प्रचलित मान्यता के अनुसार तुलसी का जन्म १५८९ ई० में पिता आत्माराम दुबे तथा माता हुलसी के घर उत्तर प्रदेश के बांदा जिला के राजापुर नामक स्थान में हुआ था। इसी सन्दर्भ में इनकी मृत्यु १६८० ई० में मानी जाती है तथा इससे सम्बंधित यह दोहा प्रसिद्द है- "संवत् सोलह सौ असी असी गंग के तीर श्रावण शुक्ला सप्तमी तुलसी तज्यो शरीर।।"

गोस्वामी जी ने अपने बचपन के सम्बन्ध में अपने काव्य में लिखा है जिससे पता चलता है कि जीवन के प्रारंभिक वर्षों में ही अपने माता-पिता से बिछोह के उपरांत भिक्षा मांगकर जीवन-यापन करते थे। परम्परा के अनुसार इनके गुरु का नाम नरहरिदास था। इनका विवाह रत्नावली के संग हुआ और माना जाता है की उसी के व्यंग्य वाणों से आहत होकर इन्होने वैराग्य ग्रहण कर लिया था।

कृतित्व- तुलसी के रचनाओं के सम्बन्ध में भी कई विद्वानों ने खोज कार्य किया है। उनके द्वारा रचित मान्य ग्रन्थ हैं-

रामलला नहछू, वैराग्य संदीपनी, रामाज्ञा प्रश्न, रामचरितमानस, सतसई, पार्वती मंगल, जानकी मंगल, गीतावली, कृष्ण गीतावली, बरवै रामायण, विनय पत्रिका, दोहावली, कवितावली ओर हनुमान बाहुक।

गोस्वामी जी ने अवधी तथा ब्रजभाषा दोनों में रचनाएँ की है। रामचरितमानस, रामलला नहछू, वैराग्य संदीपनी, जानकी मंगल, पार्वती मंगल, रामाज्ञा प्रश्न, बरवै रामायण की भाषा जहाँ अवधी है वहीँ गीतावली , कृष्ण गीतावली, विनय-पत्रिका, कवितावली, हनुमान बाहुक, दोहावली एवं सतसई की भाषा ब्रजभाषा है।

गोस्वामी जी के काव्य की विशिष्टता ही उन्हें हिन्दी साहित्य में उच्च स्थान पर प्रतिष्ठित करती है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल लिखते हैं- "एक ओर तो उनकी वाणी व्यक्तिगत साधना के मार्ग में विरागयुक्त शुद्ध भगवदभक्ति का उपदेश करती हैदूसरी ओर लोकपक्ष में आकर पारिवारिक और सामाजिक कर्तव्यों का सौंदर्य दिखाकर मुग्ध करती हैव्यक्तिगत साधन के साथ-ही-साथ लोक धर्म की अत्यन्त उज्जवल छटा उसमें वर्तमान है।" यह एक ऐसी विशिष्टता है जो तुलसी को लोकहितवादी तुलसी बनती है। उन्होंने प्रत्येक स्टार पर मर्यादा के पालन पर बल दिया एवं प्रत्येक अवसर पर सदाचार को सर्वोपरि बताया।

एक और प्रवृति उन्हें भक्त कवियों में श्रेष्ठता प्रदान करती है , वह है समन्वय की भावना। उन्होंने ज्ञान और भक्ति, शिव और विष्णु, अद्वैत और विशिष्टाद्वैत की एकता पर बल दिया तथा धर्म को लोकग्राह्य सामान्य रूप में प्रस्तुत किया।

इस प्रकार गोस्वामी तुलसीदास हिन्दी साहित्य के भक्ति काल की अमूल्य निधि हैं। उन्होंने न सिर्फ़ राम भक्ति की परम्परा को आगे बढाया वरन उससे कहीं आगे बढ़कर लोकहित की भावना से काव्य की रचना की। मर्यादा और पारिवारिक-सामाजिक मूल्यों के सागर रामचरितमानस के साथ वे लगभग प्रत्येक हिंदू घर में विराजमान हैं।


4 टिप्‍पणियां:

MANVINDER BHIMBER ने कहा…

Tulsi Daas ke baare mai vistaar se jaankaari ka shukriya


verification hata de

Udan Tashtari ने कहा…

आभार जानकारी एवं आलेख के लिए.

जितेन्द़ भगत ने कहा…

आपका प्रयास सराहनीय है और इस लि‍हाज से महत्‍वपूर्ण भी कि‍ आप वि‍शि‍ष्‍ट चीज़े इंटरनेट पर उपलब्‍ध करा रहे हैं। इस ब्‍लॉग पर ऐसी ही चीजे रखते हुए यूँ ही इसकी गुणवत्‍ता कायम रखें। शुभकामनाऍं

Ranj ने कहा…

Tulsi das ji ke baare me jankar bahut khusi hua, aap aise hi unke baare me hame jankari pradan karte rahe.

Bolo SITARAM ki JAI