हिन्दी साहित्यिक विकास के एक लंबे दौर से गुजरी है और इस दौरान कई उतार-चढाओं, बदलावों तथा नई प्रवृतियों से इसका परिचय हुआ। इस विकास-पथ पर यात्रा के दौरान कई सृजनकारों ने अपनी सृजनात्मक क्षमता से हिन्दी को अनमोल रचना रूपी आभूषणों से विभूषित किया है। चाहे वह गद्य विधा हो या पद्य विधा, हिन्दी के कई साहित्यकारों ने अपनी अलग साहित्यिक पहचान बनाई है. इन्ही मनीषियों तथा इनकी रचनाओं से जुड़ने की मैं एक छोटी सी कोशिश कर रहा हूँ।

30 अगस्त 2008

निराला: एक परिचय

निराला जी हिन्दी साहित्य के महानतम सृजनकारों में से एक हैं। छायावाद की धुरी रहने के बावजूद निराला की कविताओं में प्रगतिवाद की नीव भी स्पष्टतया परिलक्षित होती है। उनके दुर्धर्ष संघर्ष की क्षमता उन्हें मात्र एक रचनाकार न रहने देकर एक साहित्यिक आदर्श के रूप में प्रतिष्ठापित करती है। निराला जी तथा उनके कृतित्व का एक सामान्य परिचय मैं यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ।
सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' का जन्म १८९६ ई0 में बसंत पंचमी के दिन हुआ था। पिता पंडित राम सहाय त्रिपाठी महिषादल स्टेट मेदिनीपुर (बंगाल) में कार्यरत थे। १७-१८ वर्ष की आयु तक पहुँचते ही विपत्तियों का क्रम चल पड़ा। पिता की असामयिक मृत्यु हो गई। जीवन में अपने कुटुम्बों के निधन को इन्हे कई बार सहना पड़ा। पत्नी और फ़िर बाद में पुत्री की मृत्यु ने इनके जीवन को त्रासदी से परिपूर्ण बना दिया था।निराला के जीवन का दूसरा पहलु उनका व्यक्तित्व है। सोना जिस प्रकार आग में तपकर निखरता है, निराला का व्यक्तित्व भी तपकर निखरता चला गया। निराला का आकर्षक व्यक्तित्व विद्रोही और क्रन्तिकारी तत्वों से निर्मित हुआ था और निराला, 'महाप्राण निराला' बन जाते है। अक्टूबर १९६१ में प्रयाग में इस महान रचनाकार ने अपना शरीर त्याग दिया।
निराला जी द्वारा विरचित साहित्य (६७ ग्रन्थ) इस प्रकार है-
कविता-संग्रह- अनामिका भाग-१(१९२३) भाग-२(१९३८), परिमल(१९४०), गीतिका(१९३६), कुकुरमुत्ता(१९४२), अणिमा(१९४३), बेला(१९४६), नए पत्ते(१९४६), अपराह्न(१९५०), आराधना(१९५१), अर्चना(१९५९), श्री रामचरितमानस का खड़ी बोली में रूपांतर एवं वर्षागीत।
खंड काव्य - तुलसीदास (१९३८)।
उपन्यास - अप्सरा, अलका,प्रभावती, निरुपमा, चोटी की पकड़, काले कारनामे, उच्छृन्खल तथा चमेली।
कहानी-संग्रह - लिली, राखी, चतुरी चमार तथा सुकुल की बीबी।
रेखाचित्र - कुल्लीभाट और बिल्लेसुर बकरिहा।
निबंध-संग्रह - प्रबंध पद्म, प्रबंध प्रतिभा, चाबुक तथा प्रबंध परिलय।
आलोचनात्मक - रबीन्द्र कविता कानन।
अनुवाद - कथा साहित्य का अनुवाद (आनंद मठ, कपाल कुण्डला, चंद्र शेखर, दुर्गेश नंदिनी, कृष्णकांत का बिल, युग्लान्गुलीय, रजनी, देवी चौधरानी, राधारानी, विष वृक्ष, राज सिंह तथा महाभारत) तथा धार्मिक एवं आध्यात्मिक साहित्य का अनुवाद।
नाटक - समाज, शंकुतला तथा अनिरुद्ध (तीनो अप्रकाशित)।
स्फुट रचनाएँ - हिन्दी बंगला शिक्षक, रस-अलंकार, वात्स्यायन कामसूत्र तथा तुलसी रामायण की टीका।
निराला जी की रचनाओं की एक लम्बी फेहरिस्त इस बात का प्रमाण है की वे मात्र कवि नही थे वरन एक सम्पूर्ण साहित्यकार एवं सृजनकार थे। इसके साथ ही उनकी रचनाएँ एक साहित्यिक क्रांति की चिंगारी के साथ प्रस्फुटित हुई हैं। जीवन में असीम वेदना के साथ दुर्धर्ष संघर्ष ने हिन्दी साहित्य को एक अनमोल रत्न निराला के रूप में दिया जिन्होंने कविता से छंद के बंधन को तोड़कर उसे साहित्याकाश में उड़ने की उन्मुक्तता प्रदान की।

5 टिप्‍पणियां:

प्रदीप मानोरिया ने कहा…

निराला जी के संबध में जानकारी का स्वागत है
कृपया पधारें http://manoria.blogspot.com kanjiswami.blog.co.in

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

हिन्दी के चिराग ही हैँ निरालाजी जिनकी पावन ज्योति आज भी प्रखर है -
धन्यवाद !

राजेंद्र माहेश्वरी ने कहा…

हिन्दी साहित्य के सृजनकारों का एक ही जगह संकलन तैयार करना वाकई ब्लॉग जगत के लिये एक अनमोल सम्पत्ति होगी।

युग परिवर्तन की यह बेला आपको सपरिवार मंगलमय हो | शिव की शक्ति, मीरा की भक्ति, गणेश की सिद्धि, चाणक्य की बुद्धि, शारदा का ज्ञान, कर्ण का दान,राम की मर्यादा, भीष्म का वादा, हरिश्चंद की सत्यता, लक्ष्मी की अनुकम्पा एवम् कुबेर की सम्पन्नता प्राप्त हो यही हमारी शुभकामना है |

Sanat 'sagar" ने कहा…

चिरागों की रोशनी से रोशन कर दिया है चिट्ठा-संसार. हम सब मिल्कर यूं ही आगे बढें तो बढ जायेगा हिन्दी-संसार.
कृपया देखें
http://kavita--kavita.blogspot.com

Randhir Singh Suman ने कहा…

nice